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Sunday, October 31, 2010

दो दोस्त


दुनिया की इस भीड़ में, मंजिल की ओर निकल पड़े,
कुछ कर  दिखाने  के , होंसले लिए हुए,
अडचनों को लांघते , पर्वतो को चीरते,
कठिनाइयों की डगर पर , एक दूजे का साथ निभाते रहे |


तन में उनके जोश था, मन में एक विशवास था, 
ना हार का ही डर था, बस जीत का विशवास था,
सपनो की दुनिया को , वो हकीकत में बदलते गये,
कामयाबी के शिखर पर, वो बढ़ते गये बढ़ते गये |


आसान नही थी राह उनकी, रूकावटे अनेक थी ,
पर जीतने का जज्बा था, कुछ कर दिखने की चाह थी, 
सोच थी अलग उनकी, सबसे अलग पहचान थी ,
रोका बहुत दुनिया ने उन्हें, पर मंजिलो में ही उनकी जान थी |



मित्रता की मिसाल वो, इस दुनिया को सिखाते गये,
परिश्रम ओर विशवास से, मंजिल के करीब आते गये,
खुदा से ज्यादा उन्हें, खुद पर विशवास था,
क्योंकि उनकी मंजिल में ही, उनके खुदा का वास था |


धनं से था न मोह उन्हें,  बस अलग पहचान की आस थी,
यही थी मंजिल उनकी, यही उनकी प्यास थी ,
आखिर वो दिन आ गया, शहनाइया  बजने  लगी,
मंजिल उनके सामने थी, कामयाबी कदम चूमने लगी |


विजय गीत बजने लगे, आसमान भी गूंज उठा, 
जीत की ख़ुशी में, संसार थम सा गया ,
बन गये मिसाल वो, देश को उन पे नाज था,
परिश्रम  ओर विशवास ही उनकी विजय का राज था |


Dedicated to my friends
            ---- डिम्पल शर्मा 

Saturday, October 30, 2010

बेरोजगारी या फिर कुशल व निपुन कर्मचरियो कि कमी ???

आज जब मेनै अखबार पढ़ा, तो समझ मे ही नही आया कि मै एक ही देश कि खबरे पढ़ रहा हू..


खबरे थी, भारतीये सेना को खल रही है ११२३८ अफसरो की कमी व दूसरी खबर थी शिक्षित बेरोजगार युवको ने किया विधानसभा का घेराव., सिरफ सेना को ही नही, देश की अन्य औद्योगिक इकाइयो जैसे कि सुचना प्रोयोधिकी, ओतोमोबाइल, फारमासुतिकल कम्पनियो को भी कुशल व निपुन कर्मचारियो की कमी खल रही है | क्या भारतीय युवको मे योग्यता का अभाव  है ?

ऐसा नही है, कमी है तो इस देश की शिक्षा प्रनाली मे..यदि मै ऐसा कहू कि देश मे पदे लिखी मशीने तेयार की जारी है , जिनकी की काल्पनिक सोच व रचनात्मकता शुन्य है, तो कोइ बुराइ नही  होगी|  

एक कहावत है की जब तक हीरे को घिसा नही जाये, उसमे चमक नही आती, उसी तरह हमारे  देश के हीरो को जब तक किताबी गयान और पाठ्यक्रम की कैद से निकाल कर ,रचनात्मक शकती से सम्पुर्न नही किय जायेगा, इन हीरो की चमक अधूरी ही रहेगी |
उधारन के तोर पर अध्यापक महोदय कक्षा मे प्रशन पुछते है कि सविधान मे कितने मौलिक अधिकार है, छात्र भी याद किया हुआ उत्तर देता है कि सर ६ है, लेकिन अध्यापक महोदय ये नही पूछ्ते कि आप को क्या लगता है, कि
ये अधिकार काफी है, आपको क्या लगता है कि कोन सा अधिकार समाप्त कर देना चाहिये या फिर और कौन सा नया अधिकार सम्मिलित करना चाहिये ?? यही वजह है कि हमारे देश के विद्याथियो की सोचने की शक्ति शुन्य है, कोइ भी नया सीखने की बात नही करता, पाठ्यक्रम से बाहर सोचने
को छात्र समय की बर्बादी सम्झ्ते है...

पाठ्यक्रम भी ऐसा तैयार किया हुआ होता है कि नयी प्रोद्योगिकी से १० वर्ष पिछे चल रहा होता है ओर यदी ऐसा ही चलता रहा, तो हमे सिर्फ हमे ऐसी मशीने ही तयार मिलेगी जो सिर्फ सीखा सिखाया काम ही करेगी.

इसलिये यदि सच मे देश की अर्थ व्यवस्था को सुचारु रुप से चलाना है, तो उद्योगो को सिर्फ मशीने नही, कुशल कर्मचारी प्रदान करने होगे | 

                                             - dimple  sharma

अन्धकार ही अन्धकार है

बहुत दिनों से सोचा , की कुछ ऐसा लिखू,
जिस माट्टी में जनम लिया, शोभा उसकी बड़ा सकू
बुलंद होंसलो से में, आवाज को उठा सकू ,
लेकिन ये सोचा न था , बेठे है द्रोही इसकी गोद में,
दबे है खुद , दबायेंगे तुझे ,
भ्रस्त्ताचार, लोभ, माया ये |


जिस देश में गुरु इश्वर था ,
मानवता थी, प्यार था ,
आज चारो तरफ अन्धकार ही अन्धकार है
राम रहीम के देश में,
आज अन्याय है, दुराचार है |


संस्कृति की रक्षा के नाम पर,
कट्टरपंथियों का बोल बाला है,
बेक़सूर पिस्ता जा रहा,
दोषी हो रहा बलवान है |
हे राम , तेरे देश में आज अन्धकार ही अन्धकार है


राम राज के नाम पर, मांगे है ये वोट सभी ,
रामराज का तो पता नही , राम रहीम को लडाते है यही,
मंदिर मस्जिद की लडाई में,
आज पिस रहा निर्दोष है ,
आज चारो तरफ अशांति है,
मन में सबके द्वेष है |


तिरंगे की चमक आज, फीकी है पड़ चली,
रोजी रोटी के नाम पर , आंधी ये कैसी चल पड़ी,
उड़ा न ले जाये आशियाना कही , आंधी ये खुन्कार है,
हे राम तेरे देश में, आज अन्धकार ही अन्धकार है |


डिम्पल शर्मा