adban

Friday, November 12, 2010

मंत्री जी किसी नये व्यक्ति को भी मौका दो



भारत एक लोकतान्त्रिक देश है | क्या सच में ?? जब हमारा सविधान लिखा गया, तो उस में सभी राजाओ की रियासतें समाप्त कर दी गयी व् भारत को एक गणतंत्र राज्य घोषित किया गया |


लेकिन आज आजादी के ६३ वर्ष बाद भी, जो लोग सत्ता में है, क्या  वो आम लोग है ?? क्या आम जनता में से किसी को नेतृत्व करने का अवसर प्राप्त हुआ ??? जैसे राजाओ के राजकाल में राज्य की  सत्ता राजा की मृत्यु के बाद उसके वारिस को दे दी जाती थी , आज भी भारत में किसी नेता की मृत्यु के पश्चात उसके उतराधिकारी के तौर पर उसके पुत्र को ही चुना जाता है  | 


उदारण के तौर पर पंजाब में बादल परिवार( प्रकाश सिंह बादल  ने उप-मुख्यमंत्री पद किसी वरिष्ट अकाली नेता को न देकर अपने पुत्र सुखबीर बादल को ही दिया , उसमे वो भविष्य का मुख्यमंत्री देख रहे है )


इसी तरह से  जम्मू कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार, केंद्र में गाँधी परिवार, हरियाणा में भजन लाल परिवार और इतने अनेको ही उदाहरण होंगे  | क्या किसी नेता ने अपनी पार्टी की कमान अपने बाद किसी अन्य व्यक्ति या पार्टी के वरिष्ट नेताओ को सौंपी है ??? नहीं, उनका प्रयास यही रहता है कि  अपने परिवार के ही किसी सदस्य को पार्टी की कमान दी जाये..... 


आम जनता को भले ही मतदान का अधिकार अवश्य प्राप्त हो गया हो , लेकिन अपने मत्त का प्रयोग उन्हें उन्ही राज परिवारों के वारिसो को चुनने के लिए करना पड़ता है...


इस विषय पर मेरी कविता के रूप में कुछ पंक्तिया 


देश के नेताओ का एक ही सपना,
उनके मरने के बाद,
मत्री बने उनका बेटा अपना |


कुर्सी को वो अपनी जागीर समझ बैठे है,
पीढ़ी  दर पीढ़ी उसे हंस्तान्त्रित करते रहते है,
बेटा भले ही परिवार चला न पता हो,
पर देश का बोझ उसके कन्धों पर थोप देते है |


गरीब बेचारा तो दो वक़्त कि रोटी में उलझा रहता है,
नौकरी कि चाह में राज नेताओ के तलवे चाटता रहता है,
शायद वो भी अच्छा नेता बन पता,
यदि इस देश में भाई भतीजावाद न होता |


लोकतंत्र तो केवल नाम मात्र ही है,
तंत्र तो कुछ गिने चुने ही चलाते है,
जिनके पूर्वज सत्ता में थे,
कानून आज भी वही लोग बनाते है |


बस अंतर है तो इस बात का, 
पहले बिना वोट के राजा बनते थे,
आज वोट लेकर राज चलाते है,
वोट डालने वाला तो वहीँ का वहीँ ,
मंत्री जी के बच्चे जरुर विदेश यात्रा पर जाते है |


आजादी के ६३ वर्षो बाद भी ,
हम कुछ राज परिवारों के गुलाम है ,
सविधान तो बना दिया गया ,
पर कुछ लोगों के हाथ ही उसकी कमान है|


आज नेता काबिलियत से नहीं ,
पिता के नाम से बनते है ,
मंत्री साहब भी पुत्र धर्म निभाते है,
जाते जाते सत्ता कि वसीयत ,
पुत्रो के ही  नाम करते है |


--------------------------डिम्पल शर्मा -------------------

Friday, November 5, 2010

राष्ट्रीय भाषा के उच्चारण पर जुर्र्माना


पिछले सप्ताह , मेरे भतीजे ने मुझे बताया की उसको स्कूल में हिंदी बोलने पर जुर्र्माना लगा दिया गया | मुझे ये समझ नही आया कि राष्ट्रीय भाषा के उच्चारण पर किस बात का जुर्र्माना ?? अवश्य ही हमें नयी भाषाओ को सीखना चाहिए, लेकिन इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि हम किसी भी रूप में अपनी राष्ट्रीय भाषा का अपमान तो नही कर रहे...
इस घटना ने मेरी कल्पनाओ को कुछ ऐसा सोचने के  लिए मजबूर किया कि यदि हिंदी और अंग्रेजी भाषा की आपस में तकरार हो, तो क्या दृश्य पेश होगा ? कविता के रूप में मेरी चंद पंक्तियाँ 


अंग्रेजी भाषा हिंदी को 


अरे हिंदी, देखो मेरी माया,
देश विदेशो में मैंने खूब नाम कमाया,
आज पुरे संसार में मेरी गूंज है,
तू तो जिस देश की उपज है,
तुझे तो वो देश ही याद न रख पाया |


हिंदी विन्रमता से उत्तर देते हुए


बहन ! मैं तो देशवासियो को एक सूत्र में पिरोना चाहती थी,
दक्षिण में हिंदी कम बोली जाती थी ,
इसीलिए पुरे भारत को अंग्रेजी सीखने की आजादी दी,
यदि में भी चीन, जापान की तरह कट्टर हो जाती,
तू तो क्या , तेरी परछाई भी इस देश में न आ पाती |


अंग्रेजी फिर से हिंदी को 


हिंदी तुने तो कहा था कि , तू बहुत बलवान है,
वेद और ग्रन्थ इस का प्रमाण है ,
पर सच पूछे तो, तू तो अपंग है,
आज तेरा भारत ही, ना तेरे संग है,
मेरा उच्चारण करने वाला ज्ञानी,
तेरा तो स्नातक भी बेरंग है |


हिंदी फिर अंग्रेजी से 


अभिमान मत कर ओ अंग्रेजी,
दिन हर किसी का आता है,
उन्नति उसी को रास आती है,
जो पांव जमीन पर टिकाता है,
यदि तेरा उच्चारण मात्र ही ज्ञानी बना देता,
तो आज कोई भी अंग्रेज भिखारी ना होता,
मैं पूर्व पश्चिम को जोड़ने में बाधा ना बनना चाहती थी,
इसीलिए भारतवासियो को, तुझे सीखने की आजादी दी |


अंत में कुछ पंक्तियों के रूप में मेरी इच्छा 


पर ये हिंदी ने भी ना सोचा था,
कि एक दिन ऐसा भी आएगा,
आधुनिक होने के नाम पर,
उसका ही त्याग किया जायेगा|
लेकिन इस पतझड़ के बाद,
बसंत अवश्य ही आएगा,
होगा नया सवेरा ,
और भारत जाग जायेगा,
अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में,
क, ख, ग बोला जायेगा |


    जय हिंद


----------------डिम्पल शर्मा --------------

Wednesday, November 3, 2010

आज का बेरोजगार मिर्जा


मिर्जा साहिबा के बारे में तो आप सब ने पढ़ा ही होगा, इस कविता में मैंने ये दर्शाने का प्रयास किया है की यदि मिर्जा साहिबा इस सदी में होते, तो उन्हें उन्हें किन किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता , हास्य में ही सही , पर मैंने सच्चाई प्रकट करने का प्रयास किया है |
कल नींद में एक स्वप्न आया,
मिर्जा फिर से मानव रूप में आया,
पर इस बार साहिबा उसके साथ थी,
दोनों को ही प्रेम से ज्यादा, 
नौकरी की तलाश थी |

इस जन्म ना जाति ही कोई बाधा है,
ना परिवार को विरोध है,
बस डिग्री और नौकरी ही,
उनके प्यार में एकमात्र अवरोध है |

मिर्जे को पहले पूरे  करने पिता के सपने है,
शादी से पहले, पढाई के कर्जे चुकते करने है |

इस जन्म मिर्जे को ,साहिबा के भाइयो का डर नहीं,
वो तो खुद ३०२ और पुलिस से डरते है,
बस डर है तो, अच्छी नौकरी व  तनख्वा का,
पुरे करने ग्रहस्थी के खर्चे है  |

बिजली, पानी, भोजन सब धनं से ही मिलता है,
स्वंय तो गुजारा कर भी लूँ ,
पर साहिबा  का हार श्रृंगार ,
आज कल हजारो रूपये में मिलता है ,
यही सोच कर मिर्जा बेबस और उदास है,
विवाह से पहले उसे अच्छी नौकरी की तलाश है |

अब साहिबा भी मिर्जे को चुरी नही खिला सकती ,
अब वो बेचारी भी क्या करे ,
ऍम.बी. ऐ की विद्यार्थी है,
कुकिंग नही आ सकती  |

अंत में यही कहंता चाहता हूँ कि

भले ही समय बदल गया, 
पर परेशानिया कम ना हुई,
समाज तो सुधर गया, 
पर आर्थिक मंध्हाली कम ना हुई |

------------डिम्पल शर्मा ------

Monday, November 1, 2010

शहीदों की आवाज



आदर्श सोसाइटी घोटाले पर मेरी कविता के रूप में टिपण्णी 




आज मेरी कलम भी, लिखते हुए रो पड़ी,
उसने ये सोचा न था, ये दिन भी आएगा,
देश के रखवालो को ही, ये देश धोखा दे जायेगा |

आँखे नम हो गयी आज  उनकी भी, 
जो मौत से न डरे थे,
देश की रक्षा के लिए ,
जो कारगिल जाकर लड़े थे |

ऐसा होगा उनके साथ,
ये उन्होंने भी न सोचा था,
दो गज जमीन के लिए, 
उनके परिवारों को दिया धोखा आज |

वाह रे मेरे देश के नेता, 
क्या खूब नाम तुने कमाया है,
देश के लिए शहीद होने वालो ने,
क्या पुरस्कार तुमसे पाया है,
शहीदों ने अपनी नहीं, अपने परिवार की ख़ुशी मांगी थी,
पर वो तो बेचारे मुर्ख थे, जो हँसते हँसते मर गये,
आज उनके परिवार, दो गज जमीन से भी वंचित रहे |

-------डिम्पल शर्मा