adban
Friday, November 5, 2010
राष्ट्रीय भाषा के उच्चारण पर जुर्र्माना
पिछले सप्ताह , मेरे भतीजे ने मुझे बताया की उसको स्कूल में हिंदी बोलने पर जुर्र्माना लगा दिया गया | मुझे ये समझ नही आया कि राष्ट्रीय भाषा के उच्चारण पर किस बात का जुर्र्माना ?? अवश्य ही हमें नयी भाषाओ को सीखना चाहिए, लेकिन इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि हम किसी भी रूप में अपनी राष्ट्रीय भाषा का अपमान तो नही कर रहे...
इस घटना ने मेरी कल्पनाओ को कुछ ऐसा सोचने के लिए मजबूर किया कि यदि हिंदी और अंग्रेजी भाषा की आपस में तकरार हो, तो क्या दृश्य पेश होगा ? कविता के रूप में मेरी चंद पंक्तियाँ
अंग्रेजी भाषा हिंदी को
अरे हिंदी, देखो मेरी माया,
देश विदेशो में मैंने खूब नाम कमाया,
आज पुरे संसार में मेरी गूंज है,
तू तो जिस देश की उपज है,
तुझे तो वो देश ही याद न रख पाया |
हिंदी विन्रमता से उत्तर देते हुए
बहन ! मैं तो देशवासियो को एक सूत्र में पिरोना चाहती थी,
दक्षिण में हिंदी कम बोली जाती थी ,
इसीलिए पुरे भारत को अंग्रेजी सीखने की आजादी दी,
यदि में भी चीन, जापान की तरह कट्टर हो जाती,
तू तो क्या , तेरी परछाई भी इस देश में न आ पाती |
अंग्रेजी फिर से हिंदी को
हिंदी तुने तो कहा था कि , तू बहुत बलवान है,
वेद और ग्रन्थ इस का प्रमाण है ,
पर सच पूछे तो, तू तो अपंग है,
आज तेरा भारत ही, ना तेरे संग है,
मेरा उच्चारण करने वाला ज्ञानी,
तेरा तो स्नातक भी बेरंग है |
हिंदी फिर अंग्रेजी से
अभिमान मत कर ओ अंग्रेजी,
दिन हर किसी का आता है,
उन्नति उसी को रास आती है,
जो पांव जमीन पर टिकाता है,
यदि तेरा उच्चारण मात्र ही ज्ञानी बना देता,
तो आज कोई भी अंग्रेज भिखारी ना होता,
मैं पूर्व पश्चिम को जोड़ने में बाधा ना बनना चाहती थी,
इसीलिए भारतवासियो को, तुझे सीखने की आजादी दी |
अंत में कुछ पंक्तियों के रूप में मेरी इच्छा
पर ये हिंदी ने भी ना सोचा था,
कि एक दिन ऐसा भी आएगा,
आधुनिक होने के नाम पर,
उसका ही त्याग किया जायेगा|
लेकिन इस पतझड़ के बाद,
बसंत अवश्य ही आएगा,
होगा नया सवेरा ,
और भारत जाग जायेगा,
अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में,
क, ख, ग बोला जायेगा |
जय हिंद
----------------डिम्पल शर्मा --------------
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अति उत्तम, मैंने आपकी "शहीदों की आवाज " वाली रचना भी पढ़ी |
ReplyDeleteपढ़ कर बहुत अच्छा लगा की आज की युवा पीढ़ी न केवल अपने देश की समस्याओ से जागरूक है बल्कि उनकी सोच भी देश हित में है, इसी तरह लिखते रहिये , जागरूकता लाना ही अपने आप में एक पुण्य है
aapki kavita main bahut sachchaai hai... aur likhte rehna itni achi achi kavitae......
ReplyDeleteये दुर्भाग्यपूर्ण है। इसकी निंदा होनी चाहिए।
ReplyDeleteआपने बुलाया था और हम आ गए. सुन्दर प्रस्तुति. हिंदी और अंग्रेजी में नोक झोंक बहुत अच्छी लगी. उम्मीद करता हूँ कि इसी तरह ब्लॉग पर मिलना-जुलना और बातों का सिलसिला चलता रहेगा.
ReplyDeletethnks pooja
ReplyDeleteबिलकुल सही मनोज जी, यह हमारे लिए दुर्भाग्य की बात है यदि हमारी राष्ट्रीय भाषा को सम्मान न मिले, यदि हम राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करते है, राष्ट्रीय गीत का, तो राष्ट्रीय भाषा का क्यों नही ???
ReplyDeleteअवश्य ही बलबीर जी, हम सब चिठाकार एक परिवार की तरह है, एक दुसरे से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है.......आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
ReplyDeleteनिसंदेह निंदनीय और दुर्भाग्यजनक घटना पर एक सकारात्मक रचना.... बधाई.
ReplyDeleteदीपोत्सव की हार्दिक मंगलकामनाएं.
Well done Dimple.....just give up your best and come up with flying colors...Wish you all the luck....
ReplyDeleteबहुत खूब श्रीमान डिम्पल जी .....एक आदर्श भारतीय नागरिक होने के नाते हम सब का फ़र्ज़ बनता है की हम हिंदी को विश्व स्तर पर लेकर जाए ...और आपका कविता के रूप में देशवासियों को यह सन्देश एक अमूल्य छाप है ...ऐसे ही लिखते रहिये ...
ReplyDeleteआपका शुभचिंतक
कपिल गर्ग
मेरे ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया......बहुत सुन्दर ढंग से आपने हिंदी भाषा की व्यथा का वर्णन किया है आपने......बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपने जो लिखा है, वह दुःखद तो है, लेकिन यही सत्य भी है। इसमें संदेह नहीं है कि हिंदी आज अपने ही देश में अपमानित है, लेकिन मुझे विश्वास है कि यह स्थिति बदलेगी और उसे आपके और मेरे जैसे सामान्य लोग ही बदलेंगे।
ReplyDeletehttp://blog.sumant.co.in
www.sumant.co.in
धन्यवाद अंसारी जी
ReplyDeleteबिलकुल सुमंत जी, ये स्थिति अवश्य बदलेगी , जिस दिन सभी भारतवासी मिलकर एक ही दिशा में प्रयास करेंगे ......
ReplyDeleteडिम्पल जी,
ReplyDeleteआपके बेटे के स्कूल में जो हो रहा है वैसा हमारे भी स्कूल Creane Memorial High School, Gaya में था और आज भी है| पर वैसा हमारे भले के लिए किया गया था और इससे हमारे लिए अच्छा हीं हुआ है। हमें हिन्दी का आदर करना भी सिखाया गया था पर बोलने पर प्रतिबन्ध छ्ठी से द्सवीं के छात्रों पर लागू था। पहली से पाँचवीं के लड़कों को हमारे हिन्दी में बोलने की शिकायत करने का अधिकार था। हमसे फाईन तो नहीं वसूला जाता था पर सामाजिक कार्य जैसे की पत्ते चुनना आदि करने को कहा जाता था। कार्यालयी जीवन में आने के बाद पता चला कि हिन्दी माध्यम से पढ़े छात्र हिन्दी को कम इज्जत देते हैं। ऐसा इसलिए है कि स्कूल से बाहर की दुनिया मे कदम रखते हीं उनकी हिन्दी उनके किसी काम न आई। बोले जाने वाले शब्दों के साथ साथ अभिव्यक्ति के माध्यम को भी अंक मिलने लगे।
आपकी कविता बहुत सुन्दर लगी। आशा है उस दिन का जब हिन्दी को उसका छीना हुआ सम्मान वापस मिल जाएगा।
मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी के लिए आपका शुक्रिया ।
गौतम
बिल्कुल सटीक विश्लेषण...... बदलाव ज़रूरी है.....
ReplyDeleteहिंदी का १५ वर्षों का वनवास आज 63 सालों के बाद भी पूरा नहीं हुआ ! यह हमारा दुर्भाग्य है कि हिंदी अपने ही देश में उपेछित है ! राजनीति जो न करा दे !
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट लगी !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
dimple bhai u r simply g8
ReplyDeleteWhat an Awesome post. Just wanted to drop a comment and say, I am new to your blog and really like what I am reading. Thanks for sharing it.
ReplyDeleteHey keep posting such good and meaningful articles.
ReplyDeleteI am extremely impressed along with your writing abilities and also with the format in your blog. Anyway stay up to the excellent high quality writing, it's rare to find a nice weblog like this one these days
ReplyDeleteToday, I visit your website and after reading your blog i realize that it is very informative. I'm highly impressed to see the comprehensive resources being offered by your site.
ReplyDelete